Sunday, April 2, 2017

शब्द या कविता?

कुछ शब्द आये तो थे
दबे पाँव, छुपते छुपाते से
कभी गिरते, कभी संभलते
मद्धम सांसों के,गीत गाते से 
एक थी चाह,मिलने की,उनसे
और एक वो,मदमस्त मुरली बजाये
खींच लाया,सुमधुर तान ने
जंगल नदियाँ पार कराये

झूम उठा मन, पिया को देख कर ऐसे
फ़ैल गया निगोड़ा काजल,असुवन से

पाँव अपने आप,थिरक उठे
सुर ताल पर वो,छनक उठे
 
छन  छनन छन,छन  छनन छन
छन  छनन छन,छन  छनन छन

एक पल को,सब ठहर गया
जब नज़रें मिली नज़रों से,
नाचते नाचते,पैर रुक गए
झूमता अंग कैसे रुक जाता,
शब्द ही अब गिरने लगे

बाँसुरी फेंक दी,
संभाला उन्हें,
गरवा लगा लिया

आगे क्या हुआ,
कुछ पता नहीं
सत्य था ये कि 
कल्पना थी,
शब्दों से परे थे 
क्षण वो

[ छायाचित्र ©आनंद तांबे ]  

प्रेमी युगल थे अद्वितीय,उन्मत्त और उन्मुक्त,
प्रेम था उनका अनादि,अनंत और अटूट
समय की स्याही पर,नाचे थे कुछ शब्द
आनंदमय थे,क्षण मिलन के,लिए उन्होंने लूट

प्रेम कविता,वो छोड़ गए,
बेजान शब्दों को दे,एक रूप

हाँ, कुछ शब्द आये तो थे।

आनंद तांबे © सर्वाधिकार सुरक्षित

११ बजे,  २१ मार्च २०१७ - जागतिक कविता दिवस

#WorldPoetryDay

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