Thursday, November 11, 2010

अपराजित...उत्साहित... और प्रयासरत...

एक
आशा का समंदर मेरे आगे है ,
गंभीर, उन्मुक्त, उत्ताल,
लहरें चट्टानों से टकराती हैं,
फिर लौट जाती हैं;
पुनश्च:...
लहरों का उत्साह,
अभी कम नही हुआ है,
वो अभी अपराजित हैं,
यही उत्साह, विजय की कामना,
प्रयास ही जीवन है;
लहरें जानती हैं कभी न कभी
ये चट्टानें भी टूट जायेंगी,
विशाल समंदर का वो कोना,
फिर विजय दुदुम्भियों से गूंजेगा,
और सागर पुनः,
धीर-गंभीर, विराट, आशाओं का,
बहता हुआ निर्मल जल होगा;
कुछ ऐसे ही ...
समंदर मुझे पुकारता है,
उसकी अपराजित लहरें ,
मुझे बुलाती हैं,
मैं, मौन होकर,
लहरों का जीवन अवलोकता हूँ;
और ....
समंदर बनने की सोचता हूँ ;
मौन ...
अपराजित ...
उत्साहित ...
और प्रयासरत ...

आनंद ताम्बे

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